
चंद्रपुर, महाराष्ट्र: टाइगर रिजर्व के बीच बसा छोटा सा गांव सतारा अब देश के सभी गांवों के लिए आदर्श मॉडल बन चुका है। यहां साफ-सफाई सिर्फ दिनचर्या का हिस्सा है, बल्कि लोगों के जीवन का संस्कार बन चुकी है। हर घर में आरओ पानी और मीटर नल, गलियों में कूड़ेदान और साफ-सुथरी नालियां, छोटे वॉटर फाउंटेन और शिवाजी महाराज की प्रतिमा गांव की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
सतारा की सबसे खास बात है यहां के नियम – गाली-गलौज पर 500 रुपये का जुर्माना। यही नहीं, गांव में सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट, मुफ्त इंटरनेट सुविधा, लाइब्रेरी और मनोरंजन केंद्र जैसे आधुनिक संसाधन भी मौजूद हैं। छात्र लाइब्रेरी में पढ़ाई करते हैं, बुजुर्ग मनोरंजन केंद्र में बैठकर बातचीत करते हैं, और हर कोई सामूहिक रूप से अपने गांव को स्वच्छ रखने में जुटा है।
गांव की इस सफलता की कहानी शुरू हुई जब सरपंच गजानन गुडाधे ने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की किताब ग्राम गीता से प्रेरणा ली। पांच साल की मेहनत और गांववासियों की सहभागिता से सतारा आज स्वच्छता, अनुशासन और सामूहिक एकता का प्रतीक बन गया है।
सतारा का मॉडल इको-टूरिज्म के लिए भी आदर्श माना जा रहा है। गांव के बारह आदिवासी युवकों को टाइगर सफारी के गाइड के रूप में तैयार किया गया है, जो पर्यटकों को सतारा की प्राकृतिक सुंदरता और स्वच्छता का अनुभव कराएंगे।
**सतारा यह संदेश देता है कि बदलाव की शुरुआत किसी योजना या संसाधन से नहीं, बल्कि *संकल्प और सामूहिक प्रयास* से होती है। यही कारण है कि इस छोटे से गांव ने पूरे देश में ‘सपनों का गांव’ बनने का गौरव हासिल किया है।