Thursday, December 11

CIA जासूस का दावा—पाकिस्तानी वैज्ञानिक AQ खान चला रहे थे वैश्विक न्यूक्लियर तस्करी नेटवर्क, खुलासे पर मुशर्रफ भड़के

अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी जेम्स लॉलर ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े गंभीर आरोपों का खुलासा किया है। ANI से बातचीत में लॉलर ने बताया कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल क़दीर खान—जिन्हें पाकिस्तान के परमाणु बम का जनक कहा जाता है—कई देशों को संवेदनशील टेक्नोलॉजी और जानकारियाँ बेचने में शामिल थे।

लॉलर के मुताबिक, CIA ने 2000 के दशक की शुरुआत में एक गुप्त ऑपरेशन चलाकर इस नेटवर्क का पर्दाफाश किया था। इसमें दावा किया गया कि AQ खान ने ईरान और लीबिया जैसे देशों तक न्यूक्लियर सीक्रेट पहुंचाए।

मुशर्रफ को मिले थे पक्के सबूत

लॉलर ने बताया कि उस समय CIA डायरेक्टर जॉर्ज टेनेट ने व्यक्तिगत रूप से पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ से मुलाकात की और पूरी जानकारी साझा की।

लॉलर के अनुसार,
“टेनेट ने मुशर्रफ को ठोस सबूत सौंपे कि डॉ. खान विदेशी देशों को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी मुहैया करा रहे हैं। जानकारी मिलते ही मुशर्रफ बेहद नाराज़ हो गए और तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए।”

इसके बाद AQ खान को इस्लामाबाद स्थित आवास में कई वर्षों तक नज़रबंद रखा गया। यह कदम नेटवर्क को रोकने की दिशा में अहम माना गया।

तीन दशक तक चलता रहा प्रोलिफरेशन नेटवर्क

पूर्व CIA अधिकारी का दावा है कि AQ खान न सिर्फ पाकिस्तान के लिए टेक्नोलॉजी जुटाते थे, बल्कि बाद में वही जानकारियाँ अंतरराष्ट्रीय ब्लैक मार्केट में बांटने लगे। लॉलर ने कहा कि इस दौरान खान के नेटवर्क में कई रिटायर्ड और सर्विंग पाकिस्तानी जनरल भी शामिल थे, जो निजी स्तर पर काम कर रहे थे।

लॉलर ने उन्हें अपनी टीम में “मौत का सौदागर” के नाम से संबोधित किया था, क्योंकि उनका नेटवर्क कई देशों तक फैला हुआ था और वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुका था।

पाकिस्तान की लीडरशिप अनजान थी?

लॉलर ने यह भी कहा कि शीर्ष पाकिस्तानी नेतृत्व को संभवतः नेटवर्क की पूरी जानकारी नहीं थी, और अधिकतर गतिविधियाँ निजी स्तर पर संचालित की जा रही थीं।

यह खुलासा एक बार फिर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की पारदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। CIA अधिकारी के दावे भले ही पुराने घटनाक्रम से जुड़े हों, लेकिन उनका असर आज भी वैश्विक परमाणु सुरक्षा बहस में महसूस किया जा रहा है।

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