Thursday, December 11

बिहार में करारी हार और महागठबंधन का मंथन: कांग्रेस में बढ़ी कलह, आरजेडी भी आत्ममंथन में जुटी

पटना/दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी शिकस्त के बाद अब आरजेडी और कांग्रेस दोनों पार्टियां आत्ममंथन में जुट गई हैं। आरजेडी ने बुधवार से ही पटना में प्रमंडलवार समीक्षा शुरू कर दी है, जो चार से पांच दिन चलेगी। वहीं कांग्रेस ने दिल्ली में बैठक बुलाकर हार के कारणों की पड़ताल शुरू कर दी है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी भी मौजूद हैं।

कांग्रेस में बढ़ी अंदरूनी कलह

कांग्रेस बिहार में अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर सकी। 61 सीटों पर लड़कर पार्टी को सिर्फ छह सीटों से संतोष करना पड़ा। हार के साथ ही पार्टी में अंदरूनी असंतोष खुलकर सामने आ गया है।

  • विधायक दल के नेता शकील अहमद खां ने इस्तीफा दे दिया।
  • प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम सोशल मीडिया पर कविता के ज़रिए अपनी नाराज़गी जता रहे हैं।
  • पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने हार की जवाबदेही प्रदेश नेतृत्व पर थोप दी।
  • महिला विंग अध्यक्ष पहले ही पद छोड़ चुकी हैं।

हार के बाद यह भी सवाल खड़ा हो गया है कि बचे हुए छह विधायक पार्टी में बने रहेंगे या किसी एनडीए दल का दामन थाम लेंगे।

कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण

कांग्रेस जिन मुद्दों के सहारे चुनाव मैदान में उतरी, वे जमीन पर असर दिखाने में नाकाम रहे।

  • राहुल गांधी का “वोट चोरी” अभियान बिहार की पहली ही परीक्षा में फेल साबित हुआ।
  • SIR को वोट चोरी का उपकरण बताने की रणनीति जनता को प्रभावित नहीं कर सकी।
  • टिकट बंटवारे में कथित गड़बड़ियां और “टिकट बिक्री” के आरोपों ने नुकसान पहुंचाया।
  • पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल करने को नेता पचा नहीं पाए, जिसका असर बैठक तक में दिखा।
  • नामांकन के आखिरी दिनों तक सीटों को लेकर पेंच फंसा रहा, जिससे संगठनात्मक कमजोरी उजागर हुई।

आरजेडी की भी गहरी पीड़ा

आरजेडी को भरोसा था कि इस बार महागठबंधन सत्ता में आएगा, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि भोजपुरी गायकों के चुनावी गानों ने नुकसान किया।
गानों में ‘जंगलराज’ की छवि फिर उभरकर आने से मतदाताओं का रुझान बदला और इससे एनडीए को बड़ा फायदा मिला।
वास्तविक कारण क्या हैं—इसकी स्पष्ट तस्वीर समीक्षा के बाद सामने आएगी।

कांग्रेस की राष्ट्रीय चुनौतियाँ भी बढ़ीं

बिहार की हार से कांग्रेस में मनोबल गिरा है, जबकि कर्नाटक में भी कलह चरम पर है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी हालात आसान नहीं—

  • बंगाल में पार्टी का कोई विधायक नहीं बचा है।
  • ममता बनर्जी खुले तौर पर कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं।
  • लोकसभा चुनाव में भी टीएमसी ने कांग्रेस को साथ रखने में रूचि नहीं दिखाई।

राहुल गांधी का “वोट चोरी” मुद्दा बिहार में बेअसर रहने के बाद अब कांग्रेस को नए मुद्दों की तलाश करनी पड़ सकती है।

आने वाले चुनावों में प्रभाव

अगले दो सालों में बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे।

  • बंगाल में कांग्रेस लगभग शून्य स्थिति में है।
  • यूपी और असम में भाजपा मजबूत है।
  • महागठबंधन की बिहार वाली रणनीति असफल रहने के बाद इंडिया ब्लॉक को नई रणनीति और नए मुद्दों की सख्त जरूरत होगी।

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